अंधेर नगरी चौपट राजा
- यहीं हाल है इस समय देश की क़ानून व्यवस्था का ।
मुद्दे उठा लेते हैं थोड़े से पुराने हैदराबाद वाला रेप केस याद है ना वहाँ दरिंदो को जिस नाटकीय अंदाज़ में मारा गया ,फिर आते है बाबा के इलाके की जो सुरक्षा के बड़े कसीदे गढ़ते है-विकास दुबे याद है ना कैसे मारा गया जैसे कोई पिक्चर चल रही हो ,खैर सब बहुत खुश हुए थे। तब भी तो कानून की धज्जिया उड़ाई गयी थी,तब खुश होने वाली बात सिर्फ इसलिए थी आप पुलिस वालों को सिंघम पिक्चर का अजय देवगन समझने लगे थे । तो भाई लोगों तब भी जो हुआ था वो गलत था क्योंकि जब कानून के दायरे से हट कर काम हुक्मरानों के कहेने पर होने लगेगा तो अब भी हुआ है, वो जो बैठे है न ऊपर उनको तुमसे तनिक भी भय नहीं है तब भी और आज भी। ये जिन हुक्मरानों के तलवे चाट कर उनके कहे अनुसार कर रहे है ,याद रखियेगा ये जब इसका उलट इस्तेमाल करेंगे जो कि हो रहा है तो सबसे ज्यादा दुखेगा सबको ,हां वही दुःखेगा; जहां बड़ी खुशी हो रही थी ।।तो आज वही हुआ है और अब होता रहेगा क्योंकि तुम्हारी आत्मा मर चुकी है,तुम उनके कुकर्मों पर खड़े हो ना तर्क देने उनसे भी आगे।अभी एक तबका है जो इस पर भी तुमको तर्क देने आएगा,हो सकता है कोरोना का ही बहाना बनाए,और तुम सब मूक-बधिर बने देखते रहना क्योंकि सवाल मर गये है तुम्हारे ।
आज जो भी हुआ मानवता को शर्मसार करने वाली घटना हुई है,बहुत भयावह है । अभी तीन दिन पहले डॉटर्स दिवस मना रहे थे वो बच्ची लड़ रही थी अपने जीवन की लड़ाई अपने अस्तित्व की जंग। इस घटना को मीडिया मे जगह तक नहीं मिली,उन्हे कहाँ फुर्सत है सुशांत को न्याय दिलाने से । जितनी बेशर्मी मीडिया ने दिखाई, उतनी ही क्रूरता शासन-प्रशासन ने दिखाई । इस मुद्दे ने आग तब पकड़ी तब दलित समाज ने मिल कर आवाज़ उठाई,और फिर मुद्दा जातिवाद पर आकर टिक गया ।अब आवाज़ कैसे उठाए बात यहाँ बलात्कार की नहीं,अब जाति और सरकार पर आ गयी तो तथाकथित देशभक्त आ खड़े हुए इसमें अपना ज्ञान देने। बहुत सारे कानून बनेंगे अभी पर उन सबका क्या ? क्या मतलब ऐसे कानून का जिसका गलत इस्तेमाल वो खुद रहे है ।वो उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करेंगे। आकड़े उठाकर देखिये एक बार पन्नों की संख्या गिन नहीं पाएंगे आप । आप क्या ही कीजियेगा,आप बस राजनीत कीजिये लेफ्ट राइट कीजिये ,दलित स्वर्ण देखिये ,अपनी अपनी पार्टी के गुण गाइये, बाकी जिसका गया है वो तो रो ही रहे है ।।आप क्या ही कीजियेगा ।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ,ये मंत्र है पर अब जुमले से ज्यादा कुछ नहीं।
तुम माफ मत मारना बच्ची ये समाज तुम्हारा दोषी है ।
शर्मिंदा है हम ।
‘बाड़ियाँ फटे हुए बाँसों पर फहरा रही हैं
और इतिहास के पन्नों पर
धर्म के लिए मरे हुए लोगों के नाम
बात सिर्फ़ इतनी है
स्नानाघाट पर जाता हुआ रास्ता
देह की मण्डी से होकर गुज़रता है
और जहाँ घटित होने के लिए कुछ भी नहीं है
वहीं हम गवाह की तरह खड़े किये जाते हैं
कुछ देर अपनी ऊब में तटस्थ
और फिर चमत्कार की वापसी के बाद
भीड़ से वापस ले लिए जाते हैं
वक़्त और लोगों के बीच
सवाल शोर के नापने का नहीं है
बल्कि उस फ़ासले का है जो इस रफ़्तार में भी
सुरक्षित है
वैसे हम समझते हैं कि सच्चाई
हमें अक्सर अपराध की सीमा पर
छोड़ आती है
आदतों और विज्ञापनों से दबे हुए आदमी का
सबसे अमूल्य क्षण सन्देहों में
तुलता है
हर ईमान का एक चोर दरवाज़ा होता है
जो सण्डास की बगल में खुलता है
दृष्टियोंकी धार में बहती नैतिकता का
कितना भद्धा मज़ाक है
कि हमारे चेहरों पर
आँख के ठीक नीचे ही नाक है’।
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