Friday, October 2, 2020

क्या यही है बापू के सपनों का भारत..? जहाँ अधिकारों की बातें ज्यादा पर कर्तव्यों की कम ।

 

क्या यही है बापू के सपनों का भारत..? जहाँ अधिकारों की बातें ज्यादा पर कर्तव्यों की कम ।

 

ये सवाल अकस्मात ही दिमाग में कौतूहल मचाने वाला है। क्या यही है बापू के सपनों का भारत ?

आखिरकार कब तक मटाधीश उनकी विरासत को ढोएँगे ,ढोना थोड़ा तकलीफ दे रहा होगा पर सच तकलीफ देता ही है ।

आज के दौर में पार्टियां सिर्फ खुद के फायदे तक सीमित है। इस दौर में आधिकारों की बात तो है पर कर्तव्यों की नहीं । बापू ने जिस तरह नरसेवा को ही नारायण सेवा माना,दलितों और गरीबों के उद्धार को ही अपने जीवन का ध्येय बनाया आज के दौर मे ऐसा मिलना नामुमकिन है । वे शोषणमुक्त, समतायुक्त, ममतामय, परस्पर स्वावलम्बी, परस्पर पूरक व परस्पर पोषक समाज के प्रबल हिमायती थे। उनका मानना था कि राजसत्ता और अर्थसत्ता के विकेन्द्रीकरण के बिना आम आदमी को सच्चे लोकतन्त्र की अनुभूति नहीं हो सकती। सत्ता का केन्द्रीयकरण लोकतन्त्र की प्रकृति से मेल नहीं खाता। उनकी ग्राम-स्वराज्य की कल्पना भी राजसत्ता के विकेन्द्रीकरण पर आधारित है। गांधी जी के विचार और वर्तमान की स्थिति पर चिन्तन मनन  करने पर लगता है कि लोगों की आज की स्थिति, परिस्थिति बहुत अन्तर है। सब एन-केन-प्रकारेण  हर कार्य को साध्य तक पहुँचाने को आतुर और इस कदर  आतुर है की  सारे नीति, नियम, कायदे व कानून को तोड़कर अनैतिक व हिंसक होते जा रहे है यहीं से  शुरू होता है उनके सपनों के भारत से आज की स्थिति का प्रथक होना ।



 देश की वर्तमान स्थिति बापू के सपनों से बहुत परे है। चारों तरफ बस  भय का वातावरण, नागरिक सुरक्षा का अभाव, साम्प्रदायिक ताकतों का उदय, उन्माद का माहौल, मानव अधिकारों का हनन,  धार्मिक असहृदयता, जातिवाद को लेकर हिंसा,  बढ़ती हुई आर्थिक असमानता, दलितों, पिछड़ों एवं गरीबों का शोषण,  महिलाओं का बलात्कार,  बच्चों का शोषण, गरीबी के बोझ से दबकर किसानों की आत्महत्याएं, सरकारों की दमनकारी प्रवृत्ति, संवैधानिक सिद्धांतों की अवमानना और पांव पसारता  हुआ भ्रष्टाचार ये बापू के सपनों का भारत कभी नहीं था ।  इस देश  की सर्वोच्च शासन व्यवस्था लोकतन्त्रपूँजीवादी तन्त्र में परिवर्तित हो गयी है। सामान्य निर्धन व्यक्ति जनता का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। संसद और विधानमण्डल के दोनों सदनों में लगभग 45 प्रतिशत से अधिक सदस्य किसी न किसी प्रकार से अपराधियों की श्रेणी में आ जाते हैं।

बापू के सपनों के भारत का निर्माण करने वालों नें आधुनिक शिक्षा बनाने की आंड़ में उनके ही  विचारों को दरकिनार कर दिया ।  इन सारी स्थितियों और परिस्थितियों का एक कारण यह भी है कि गांधीवादी विचारधारा का झंडा तथाकथित गांधीवादियों ने थाम रखी है। जिस चरखे और खादी से उन्होंनें जन-जन को जागरुक किया था, वही आज हासिए पर धकेल दिया गया है। खादी पहनने वाले खादी की लाज भूल चुके हैं। उनके लिए खादी स्वयं को नेता सिद्ध करने वाली पोषाक भर बन कर रह गयी है। उनके सहयोगियों नें उनके मूल्यों और कार्यक्रमों को तिलाजंलि दे दी है। सरकार के काम-काज में गांधीवादी सरोकारों और लक्ष्यों को देखना निराश ही करता है। बापू के सपनों का भारत बापू के कथित  सच्चे सपूतों नें ही तार-तार करके रख दिया है। ऐसी स्थिति में लगता है कि गांधी का सपना केवल स्वप्न बनकर रह जायेगा।

आज के दौर में गोरख पांडेय की ये  कविता बड़ी सार्थक महसूस होती है

वे डरते हैं

किस चीज से डरते हैं वे

तमाम धन-दौलत

गोला-बारूद पुलिस-फौज के बावजूद ?

वे डरते हैं

कि एक दिन

निहत्थे और गरीब लोग

उनसे डरना

बंद कर देंगे

           

भारत की प्राचीन महानता पर आज के संदर्भ में लोग तभी भरोसा कर पाएंगे जब भारत आज भी सत्य, शांति और अहिंसा का परिचय दे, सत्य का संघर्ष अहिंसात्मक तरीकों से करे।  आज एक बार फिर यही करने की जरूरत है.  

   शिखा सर्वेश